कल इंदौर हाई कोर्ट ने एक
याचिका पर फैसला सुनाते हुए “दलित” शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगा दी. “अनुसूचित
जाति और जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम” के मेरे लेक्चर्स के दौरान मैं लगातार इस
बात पर ज़ोर देता रहता हूँ कि वर्तमान में दलित जैसा कोई शब्द नहीं है. राजनैतिक
पार्टियां और राजनेता केवल अपने फायदे के लिए ही इस शब्द का उपयोग करते रहते हैं. दलित
शब्द का शाब्दिक अर्थ है- दलन किया हुआ. रामचंद्र वर्मा के शब्दकोश के अनुसार दलित
शब्द का अर्थ- मसला हुआ, मर्दित, दबाया, रौंदा
या कुचला हुआ है.
बाबा साहेब अंबेडकर ज्यादातर “डिप्रेस्ड क्लास”
शब्द का ही इस्तेमाल अपने भाषणों में करते थे, अंग्रेज
भी इसी शब्द का इस्तेमाल करते थे. शायद भारत में यहीं से ‘दलित’
शब्द का प्रयोग जाति विशेष के लिए प्रचलन में आया. उपलब्ध तथ्यों से पता चलता है कि दलित शब्द का उल्लेख
सबसे पहले 1831 की “मोल्सवर्थ डिक्शनरी” में मिलता है. पढने में आता है कि 1921 से
1926 के बीच “दलित” शब्द का इस्तेमाल समाज सुधारक “स्वामी
श्रद्धानंद” ने भी किया था. दिल्ली में “दलितोद्धार सभा” बनाकर उन्होंने
दलितों के सामाजिक स्वीकृति की वकालत की थी.
साल 1972 में
महाराष्ट्र में “दलित पैंथर्स मुंबई” नाम का एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन बनाया गया.
आगे चलकर इस संगठन ने एक आंदोलन का रूप ले लिया. नामदेव ढसाल, राजा ढाले और अरुण कांबले इसके प्रमुख नेता रहे हैं. इसका गठन अफ्रीकी-अमेरिकी ब्लैक पैंथर
आंदोलन से प्रभावित होकर किया गया था. यहीं से ‘दलित’
शब्द को महाराष्ट्र में सामाजिक स्वीकृति मिली .
उत्तर भारत में दलित शब्द को कांशीराम ने प्रचलित किया. "DS4" का गठन कांशीराम ने किया था जिसका
अर्थ है “दलित शोषित समाज संघर्ष समिति”. इसके बाद ही उत्तर भारत में पिछड़ों और अति-पिछड़ों को दलित कहा जाने लगा. मायावती हमेशा अपने आपको दलित की बेटी कहती हैं
. 1929 में लिखी एक कविता में मेरे प्रिय कवी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने भी ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल किया है , जो इस बात की पुष्टि करता है कि ये
शब्द तब प्रचलन में था. इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि इस शब्द का
प्रयोग दीन-दुखी के सन्दर्भ में किया गया था या किसी जाति विशेष के सन्दर्भ में.
कविता कुछ ऐसी है:
“दलित जन पर करो करुणा।
दीनता पर उतर आये
प्रभु, तुम्हारी शक्ति वरुणा।
दीनता पर उतर आये
प्रभु, तुम्हारी शक्ति वरुणा।
हरे तन मन प्रीति पावन,
मधुर हो मुख मनभावन,
सहज चितवन पर तरंगित
हो तुम्हारी किरण तरुणा
देख वैभव न हो नत सिर,
समुद्धत मन सदा हो स्थिर,
पार कर जीवन निरंतर
रहे बहती भक्ति वरूणा।“
हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव में दलित शब्द ने ज़ोर पकड़ा. दोनों ही प्रत्याशी “ श्री कोविंद “ और “मीरा कुमार” अपने आप को दलित बताते रहे और इनके समर्थक भी इन्हें दलित बताते रहे. कहीं चर्चा में मैंने कहा था कि काश जाति के स्थान पर इनके गुणों की चर्चा होती. मीडिया ने भी इस बात को खूब हवा दी. एक खबर की तो हैडिंग ही थी “इस बार राष्ट्रपति चुनाव कोई भी जीते देश का राष्ट्रपति दलित ही बनेगा.” जबकि 2008 में नेशनल एससी कमीशन ने निर्देश जारी कर दलित शब्द के इस्तेमाल पर आधिकारिक रोक लगा दी थी.
बहरहाल कल 22 जनवरी 2018 को दिया गया मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का यह निर्णय स्वागत योग्य है कि जाति विशेष के लिए दलित शब्द का प्रयोग न किया जाए, क्योंकि ऐसे शब्दों से वर्ग भेद को ही बढ़ावा मिलता है. और यह शब्द अपमान जनक भी है. लेकिन मेरे देखे दलित शब्द का उपयोग वर्तमान समय में जाति विशेष के लोग स्वयं ही स्वयं के लिए कर रहे हैं या राजनैतिक फायदे के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है. जैसा कि राष्ट्रपति चुनाव में देखने को मिला. हाईकोर्ट को यह भी स्पष्ट करना चाहिए था कि यदि कोई व्यक्ति स्वयं के लिए इस शब्द का प्रयोग करे या कोई राजनैतिक पार्टी इस शब्द का प्रयोग राजनैतिक लाभ के लिए करे तो क्या उनको भी कोई सजा दी जा सकेगी या जुर्माना लगाया जा सकेगा.
(c) मनमोहन जोशी..
1 टिप्पणी:
Bharat me to har kam rajnetic fayde k liye hi kiya jata he , do shabd Dalit or Kisan ,sankhya adhik hone k karan inhi k kandhe par bandook rakhi jati he.
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