Diary Ke Panne

शनिवार, 27 जुलाई 2024

अथातो भोजन जिज्ञासा…



मेरे लिए दुनिया का सबसे जटिल प्रश्न यह है कि मुझे खाने में क्या पसंद है ? जब छोटे थे तो बहुत तरह के पसंद और नापसंद होते थे यहाँ तक कि दाल में किस तरह का छौंक लगाया जाये इसकी भी चॉइस थी और ना मिले तो फिर खाना ही नहीं खाया जाता था… कोई कह सकता कि ये नख़रे हैं. हों ही शायद. 


लेकिन बड़े हो जाने के बाद अब भी स्वाद और गंध के प्रति आसक्ति और अनासक्ति दोनों ही बनी हुई है. कुछ चीज़ों के लिए अभी भी एकदम पर्टिकुलर हूँ. ये बात भी ठीक है कि अब ये समझ आ गया है कि मैं हरकुछ खा सकता हूँ बस अच्छी बनी हो.. हाँ “अच्छी” को परिभाषित नहीं कर सकता.


साउथ इंडियन फ़ूड मुझे हमेशा से पसंद रहा है लेकिन इडली मैं सांभर के बिना नहीं खा सकता.. अभी कुछ समय पहले ज्ञान हुआ कि चटनी और सांभर दोनों के ही बिना नहीं खा सकता. मीठा पसंद है लेकिन जिसमें शक्कर कम हो और चॉकलेट से तो विरक्ति सी हो गई है..कोल्ड ड्रिंक का स्वाद मुझे नापसंद है. केक, पिज़्ज़ा, पास्ता, बर्गर आदि से अपनी पटरी नहीं बैठती.. चावल खाना कब का छोड़ चुका, श्रीमती जी की कृपा से मिलेट्स पर शिफ्ट हो गया हूँ.. रोटी एक से ज़्यादा नहीं खाई जाती… हाई प्रोटीन डाइट्स पसंद करता हूँ जिसमें छोले , पनीर , बीन्स, राजमा , सोया चंक्स, दालें बेहद पसंद हैं.. ट्राइबल फूड्स का दीवाना हूँ.. छत्तीसगढ़ में बनने वाले विभिन्न प्रकार के आमट (एक प्रकार की खट्टी सब्ज़ी) बेहद पसंद हैं.. छेने की मिठाइयाँ बेहद पसंद हैं लेकिन एकदम ताज़ी. 


मेरे पास घर पर एक कटोरा है और ऑफिस में भी.. मैं थाली की जगह कटोरे में खाना पसंद करता हूँ. पता नहीं ये आदत कब से लगी.. कबीर और बुल्लेशाह को पढ़ते पढ़ते कब मैंने कासा (कटोरा) अपना लिया मुझे याद नहीं. एक बार हम ऑफिस में खाना खा रहे थे तो आदरणीय विमल छाजड़ साहब भी साथ में थे मैंने उनसे आग्रह किया कि घर से भोजन आया है आप भी साथ में करें. उनके लिए थाली परोसी और अपना कासा बैग से निकाल कर जो कुछ घर से आया था थोड़ा-थोड़ा सब उसमें मिला लिया छाजड़ साहब आश्चर्य से बोले अरे ! आप तो मुनि की तरह खाना खाते हैं. तो सहसा ध्यान आया कि पता नहीं कबसे ऐसी आदत लगी है. खाना खाते वक्त जूते उतार देता हूँ ,कटोरे( कासे) में खाना पसंद करता हूँ, एक बार खाना लेने के बाद दोबारा लेना पसंद नहीं करता… खाना खाते हुए बात करना बिलकुल भी पसंद नहीं. एक बार बैठ जाऊँ तो बीच में उठना नहीं पसंद करता…आदि आदि. लेकिन मैंने ऐसे कोई कड़े नियम या व्रत नहीं पाले हैं बस मैं ऐसा करने में सहज हूँ, ऐसा करना अच्छा लगता है.


खाने के बारे में बात करते हुए याद आया, मुझे किसी के घर खाने का न्योता स्वीकारने में बड़ी तकलीफ़ होती है क्यूँकि मैं अल्पाहारी हूँ. थोड़े में ही पेट भर जाता है और आप जिसके घर मेहमान हों वो आपको ठूँस-ठूँस कर खिलाना चाहता हैं, तो भोजन निमंत्रण आम तौर पर स्वीकार नहीं करता.. 


एक बार ऐसा हुआ मैं रायपुर किसी काम से गया हुआ था उस दौर में मेरी आदत थी कि मैं किस रोज़ कहाँ हूँ ये सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देता था.. एक स्टूडेंट जो नई-नई जज बनी थी, के घर से भोजन निमंत्रण आ गया मैंने विनम्रता से अस्वीकार किया लेकिन आग्रह बहुत स्नेहिल था उसके पिता ने और फिर जब माता जी ने भी कहा आना ही पड़ेगा तो मैं इनकार नहीं कर सका और ठीक उनके बुलाए समय पर चला गया. 


शाम के साढ़े सात बज रहे हैं. यही मेरे खाने का समय भी होता है! पिता जी घर पर नहीं हैं.. विभिन्न प्रकार के नमकीन, पाव भाजी और छोले भटूरे परोसे गये हैं.. मुझे लगा शायद यही बना हो.. तो खा गया.. मेरा पेट तो एक छोले भटूरे से ही भर गया था लेकिन उसके बाद भी पाव भाजी और कुछ नमकीन खा ली. फिर मिठाई आ गई वो भी खा गया. 


अब रात में पौने नौ बज रहे हैं मैंने हाथ मुँह धोकर विदा लेना चाहा तो वो बोलने लगे अरे सर अभी तो पापा आने वाले हैं और जो खाना बना है वो तो आपने खाया ही नहीं है . अरे बाबा रे ! मेरे पेट में तो जगह ही नहीं और मेरा भोजन तो हो चुका.. मैं स्टार्टर, मेन कोर्स और डेज़र्ट वाला इंसान नहीं हूँ. स्टार्टर में ही मेरा दी एंड हो जाता है. बहरहाल पिताजी आये और फिर 9:30 के आस पास हम भोजन पर बैठे. मेरा पेट गले तक भरा था लेकिन ज़बरदस्ती मैं कुछ ठूँसने का असफल प्रयास कर रहा था.. जिसको देख माता जी को लगा कि शायद सर को खाना ठीक नहीं लगा.. जैसे ही वहाँ से बाहर निकला कान पकड़े की अब किसी के यहाँ भोजन निमंत्रण पर नहीं जाना है.. मानो “मुहब्बत से, इनायत से वफ़ा से चोट लगती है..”


क्या खाना क्या ना खाना मुझे लगता है सबकी व्यक्तिगत चॉइस है. किसी ने क्या खूब कहा है -


“ कोई मांस कोई साग कहावे ,

पेट भरण को सब जग खावे,

दोनों में ही जीव समावे

जो जाने सो बुद्ध कहावे.”


✍️एमजे 

मंगलवार, 23 जुलाई 2024

जब कहीं कुछ नहीं भी नहीं था…

 

                                                      
                      Picture : Creation of the universe 
                                            

                                                 

"सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या कहाँ, किसने देखा था
उस पल तो अगम, अटल जल भी कहाँ था"

नब्बे के दशक में “भारत एक खोज” नाम का कार्यक्रम दूरदर्शन पर सप्ताह में एक बार आता था जो जवाहरलाल नेहरू जी कि किताब "डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया" पर आधारित था हम  उसका इंतज़ार करते थे जिसमें ऋग्वेद का यह सृष्टि सृजन सूक्त सुनाई पड़ता था तब तो इसके बारे में बहुत कुछ नहीं पता था लेकिन सुनने में ये बड़ा अच्छा लगता था और न जाने कब याद भी हो गया.


दुनिया के सभी धर्मग्रंथों में यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि मानव सहित सृष्टि के हर चर और अचर प्राणी की रचना ईश्वर ने अपनी इच्छा के अनुसार की... प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में उपलब्ध वर्णन से भी स्पष्ट होता है कि प्राचीनकाल में मनुष्य लगभग उतना ही सुंदर व बुद्धिमान था जितना कि आज है. 


पश्चिम की अवधारणा के अनुसार यह सृष्टि बस कुछ ही हज़ार साल  पुरानी है. यह विधाता द्वारा एक बार में रची गई है और पूर्ण है.


अनादि माने जानेवाले सनातन धर्म, जिसे हिंदू धर्म के नाम से भी जाना जाता है, में कल्पना की गई है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की और मनु व श्रद्धा को पहले स्त्री और पुरुष के रूप में रचा. प्राचीन यहूदी धर्म, लगभग दो हजार वर्ष पुराने ईसाई धर्म और लगभग तेरह सौ वर्ष पुराने ईस्लाम धर्म में आदम एवं हव्वा को आदिपुरुष और आदिस्त्री माना जाता है.


कालक्रम की गणना में विभिन्न धर्मों में अंतर है. सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि की रचना होती है, विकास होता है और फिर संहार (प्रलय) होता है. इसमें युगों की गणना का प्रावधान है और हर युग लाखों वर्ष का होता है, जैसे वर्तमान कलियुग की आयु चार लाख बत्तीस हजार वर्ष आँकी गई है. पश्चिमी धर्मों(अब्राहमिक धर्मो) की मान्यताओं के अनुसार ईश्वर ने सृष्टि की रचना एक बार में और एक बार के लिए की है. 


लेकिन मनुष्य की जिज्ञासाएँ कभी शांत होने का नाम नहीं लेती हैं....सो सत्य की खोज जारी रही.... परिवर्तशील प्रकृति का अध्ययन उसने अपने साधनों के जरिए जारी रखा और उपर्युक्त मान्याताओं में खामियाँ शीघ्र ही नजर आने लगीं.  भारत में धर्म सहिष्णु ही रहा है या कहें कि धर्म और विज्ञान हाथ में हाथ डाले चलते रहे हैं तो शायद ये बात सही होगी. समय-समय पर आर्यभट, वराह मिहिर, भारद्वाज  तथा अश्विनी कुमार  जैसे विद्वानों ने जो नवीन अनुसंधान किए उन पर गहन चर्चा हुई. लोगों ने पक्ष और विपक्ष में अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त किए. परंतु पश्चिम में धर्म अत्यंत शक्तिशाली था...वह रूढ़ियों से ग्रस्त भी था. जो व्यक्ति उसकी मान्यताओं पर चोट करता था उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती थी. कोपरनिकस ने धार्मिक मान्यता पर पहली चोट की. उनका सिद्धांत उनकी  पुस्तक "मैग्नम ओपस" के रूप में जब आया तो वे मृत्यु-शय्या पर थे और जल्दी ही चल बसे. ब्रूनो एवं गैलीलियो जैसे वैज्ञानिकों को भारी कीमत चुकानी पड़ी... ब्रूनो को केवल इस कारण  जिंदा जला दिया गया क्यूंकि उन्होंने ब्रहमांड के अनंतता का सिद्धांत दिया जो आमतौर पर प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के एक दम विपरीत थी..... गैलीलियो को अपने वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए लंबा कारावास भुगतना पड़ा...पर उनके ये बलिदान व्यर्थ नहीं गए....उन्होंने लोगों के ज्ञानचक्षु खोल दिए....अब लोग हर चीज को वैज्ञानिक नजरिए से देखने लगे थे..


धार्मिक रूढ़िवादिता से जकड़ी हुई दुनियाँ में किसी प्रकृति विज्ञानी द्वारा यह प्रमाणित करने का साहस करना कि यह सृष्टि लाखों करोड़ों वर्ष पुरानी है, अपूर्ण है और परिवर्तनीय है... सोचता हूँ उस समय ये कितनी बड़ी बात रही होगी ! ईश्वर की संतान या ईश्वर के अंश मानेजाने वाले मनुष्य के पूर्वज वानर और वनमानुष के पूर्वज समान ही रहे होंगे, यह प्रमाणित करनेवाले डार्विन को अवश्य यह अंदेशा रहा होगा कि उसका हश्र भी कहीं ब्रूनो या गैलिलिओ जैसा न हो जाए. 


क्रमशः..... 


-एमजे 

शनिवार, 20 जुलाई 2024

हरि रूठे गुरु ठौर है…

चित्र: गुरुपूर्णिमा के अवसर की एक पुरानी तस्वीर 

आज गुरु पूर्णिमा है ,भारतीय संस्कृति और दर्शन की परम्परा से गृहीत भारतीय वाङ्मय में गुरु को ब्रह्म से भी अधिक महत्व प्रदान किया गया है. गुरु को प्रेरक, प्रथम आभास देने वाला, सच्ची लौ जगाने वाला और कुशल आखेटक कहा गया है, जो अपने शिष्य को उपदेश की वाणों से बिंध कर उसमें प्रेम की पीर संचरित  करता है. कबीर ने  कहा है-

“गुरु गोविन्द तो एक हैं दूजा याहू आकार,
आप मेटि जीवित मरै तो पावै करतारII”

अद्वयतारकोपनिषद में अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर करके ज्ञान प्रदान करने वाले को गुरु कहा गया है - “गुशब्दस्त्वन्धकारः स्यादुशब्दस्तन्निरोधकःII” इस प्रकार अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर करके ज्ञान प्रदान करने वाला गुरु कहाता है. कहा गया है- गारयति ज्ञानम् इति गुरुः..... अर्थात गुरु उसे कहते है जो ज्ञान का घूंट पिलाये.

सूर के विषय में तो एक कहावत ही प्रचलित है की उनके गुरु बल्लभाचार्य ने उनके कर्तृत्व को ही उलट दिया था.. सूरदास के दैन्य एवं आत्मग्लानि के पदों को सुनकर बल्लभाचार्य ने कहा था की क्या घिघियाते ही रहोगे, कुछ कृष्ण की लीला गाओ ? और फिर वात्सल्य और श्रृंगार का सूरसागर उताल तरंगें भरने लगा था, जो आज भी हिन्दी साहित्य के लिए गौरव की वस्तु मानी जाती है..

जायसी के पद्मावत में सुआ गुरु का काम करता है... “गुरु सुआ होई पंथ देखावा” मेरे देखे प्रेम मार्ग में भी गुरु का महत्व है.... वही प्रेमी को प्रिय की ओर सर्वप्रथम उन्मुख करता है

कबीर अपने गुरु की प्रशंसा करते हुए नहीं अघाते... उन्होंने तो गुरु दिखाई बाट कहकर साधना में सिद्धि का सारा श्रेय अपने गुरु को दिया है.... काशी में हम प्रकट भये हैं रामानन्द चेताये जैसी उक्ति भी कबीर के गुरु प्रशंसा का प्रमाण है.

मेरे जीवन में कई लोगों कि छाप है जिन्हें मैं गुरु के रूप में देखता हूँ और जिनेहं वन्दनीय समझता हूँ... जैसे जिनकी बात आज मैं करना चाह रहा हूँ “डॉ मुकेश कटारे”.....  हम बच्चों के बीच कटारे सर के नाम से प्रसिद्द डॉ कटारे बस्तर हाई स्कूल में में साईंस पढ़ाते थे.... लंबा कद, छरहरे, सौम्य और गंभीर कटारे सर से परिचय तब से था जब मैं कक्षा आठ में पढता था. विषय पर गहरी पकड़ और बच्चों से मित्रवत व्यवहार सर को अलग ही व्यक्ति बनाते थे. वे आकाशवाणी के कार्यक्रमों में लगातार जाते रहते थे और जब कभी कोई छात्रों से सम्बंधित कार्यक्रम होता तो मुझे भी साथ ले जाते.. परिचर्चा और सामान्य ज्ञान के कई कार्यक्रमों में उनके साथ आकाशवाणी जाने का लगातार अवसर मुझे मिलता था.

स्कूल के लंच टाईम में सर के साथ कई बार भोजन करने का अवसर मिला और विज्ञान कि तो कितनी ही गूढ़ बातें उनसे समझीं और सीखीं जो आज तक वैसी ही याद हैं जैसी उन्होंने बताई थी.  

कक्षा 10 में वो हमारे क्लास टीचर बने.... मैं क्लास का मॉनिटर था. अटेंडेंस से लेकर कॉपी चेक करने की ज़िम्मेदारी वो मुझे देते थे और मैं अपने आप पर गर्व करता था.. “बना है शाह का मुसाहिब तो फिर है इतराता....”  ख़ुद को काबिल समझता था. स्टाफ रूम में जहां सारे टीचर्स बैठते थे उनके कारण मुझे भी बैठने का अवसर मिलता था.

मैं अगर क्लास रूम में नहीं हूँ तो या तो  प्लेग्राउंड में होऊंगा और अगर वहां भी नहीं हूँ इसका मतलब है कि स्टाफ रूम में टीचर्स के साथ बैठा मिलूँगा. 

मेरे मन में सभी शिक्षकों के लिए गहन आदर भाव था लेकिन सर के लिए मेरे मन में अलग ही किस्म का आदर और सम्मान था बाकी सब मेरे शिक्षक थे तो कटारे सर मेरे गुरु थे. उन्हें भी मुझसे बड़ा लगाव था ऐसा मुझे लगता है और साथ ही उनको यह विश्वास भी था कि मैं स्कूल टॉप करूँगा.

एग्जाम हुए और  फाईनल रीज़ल्ट का दिन भी आ गया....ये क्या स्कूल तो दूर की बात मैं क्लास भी टॉप नहीं कर पाया. इस बात से मुझे इतनी हताशा हुई कि मैं रिजल्ट के बाद उनसे मिलने भी नहीं गया. सोचता था किस मुँह से उनसे मिलूँगा फिर स्कूल खुलने के बाद पता चला कि उनका ट्रांसफ़र ग्वालियर हो गया है.

फिर कभी उनसे मिलना नहीं हुआ.. लेकिन उनकी बातें हमेशा ज़ेहन में ताज़ा रहीं.. मुझे नहीं पता कि क्या उन्होंने भी मुझे कभी याद किया होगा? लेकिन जब भी मैं साइंस कि दुनियां में झांकता हूँ तो उनकी आवाज़ और झलक हमेशा मेरे ज़ेहन में ताज़ा हो जाती है ... उनके व्यक्तित्व की छाप हमेशा मुझ पर हमेशा रहेगी... 

सभी गुरुजनों को गुरु पूर्णिमा कि शुभकामनाएँ...

✍️एमजे21-07-2024
    


शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

सुरेंद्रपाल जी


 

पिछले दो दशकों में अलग अलग विधाओं से जुड़े कई सेलिब्रिटीज़ से मिलने का सुअवसर मिला हैराजस्थान प्रवास के दौरान संगीत और साहित्य जगत के मूर्द्धन्य कलाकारों से मिलने का अवसर मिला और मध्य प्रदेश प्रवास में सिनेमा साहित्य और टीवी जगत के सेलिब्रिटीज़ सेऔर ये कहने में मुझे ज़रा भी संकोच नहीं है कि इन सभी में यदि सबसे बेहतरीन व्यक्तित्व के मालिक कोई हैं तो वो हैं श्री सुरेन्द्र पाल जी.

बड़ा कलाकार होना, अच्छा कलाकार होना और अच्छा व्यक्ति होना ये सब अलग अलग बातें हैं लेकिन अगर ये सारी बातें किसी एक व्यक्ति के व्यक्तित्व का हिस्सा हों तो उन्हें आप सुरेंद्र पालनाम दे सकते हैं.

जैसा कि उनसे हुई लंबी बातचीत से पता चला कि उन्होंने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत वर्ष 1984 में की थी. आप कई सुपरहिट फिल्मों जैसे खुदा गवाह, सहर और जोधा अकबर में अपने काम के लिए सराहे गये और टेलीविजन धारावाहिकों जैसे वो रहने वाली महलों की, लेफ्ट राइट लेफ्ट और विष्णु पुराण में काम कियाटीवी पर उनकी सबसे उल्लेखनीय भूमिकाओं में से एक रामसे ब्रदर्स द्वारा निर्मित ज़ी हॉरर शो के एपिसोड साया में विक्रांत जब्बार की भूमिका भी थी..

विराट करियर में अनगिनत भूमिकाओं को अमर कर देने वाले आदरणीय सुरेंद्र पाल सर को आज भी याद किया जाता है महाभारत में निभाए गए उनके द्रोणाचार्यके किरदार के लिए और शक्तिमान के किल्विशके लिए.

बेहतरीन अभिनेता होने के साथ - साथ उनसे मिलकर एहसास हुआ कि विनयी हो जाना विद्वान होने का आवश्यक गुण है.

एमजे


जड़ों कि ओर......


 

 

पाँच जून को विश्व पर्यावरण दिवस था और 6 जून को वट सावित्री पूजन.. कभी सोचता हूँ तो ये व्रत, पूजन और त्योहार दिल को भीतर तक छू जाते हैं.. जब हम छोटे थे तो इन व्रत त्योहारों के चलते पूरा जीवन ही उत्सव था

 

अब इस त्योहार को ही लीजिए ये पर्यावरण के महत्व को तो बताता ही है साथ ही भारतीय मनीषी परंपरा में महिलाओं के स्थान के बारे में भी बात करता है .

वट-सावित्री पूजन त्योहार से जुड़ी कहानी की हीरो विदुषी सावित्री है जिसके पति सत्यवान की मृत्यु हो गई है. यमराज जब सत्यवान को ले जा रहे होते हैं तो सावित्री भी उनके पीछे चल देती है -

यम : तुम जहां तक इसका साथ दे सकती थी तुमने दिया अब लौट जाओ

सावित्री : सनातन परंपरा में जहां पति वहाँ उसकी पत्नी, पति के समीप रहते हुए मुझे किसी प्रकार की थकावट नहीं हो सकतीपति का संग और सत्पुरुष का संग, मुझे इस युगल लाभ से वंचित न करें देव! लौटने का प्रश्न ही नहीं उठता.

यम: सावित्री! तुम्हारी बातें इतनी धर्मप्रिय और सत्य सार हैं कि मैं इसे परम-प्रिय और हितकर स्वीकार कर रहा हूँसत्यवान के जीवन को को छोड़कर कोई भी एक वर माँग लो .

सावित्री : तीन वर चाहिए

यम : माँगो !

सावित्री : मेरे सास ससुर अंधे हैं उनकी आँखें लौटा दो

यम : तथास्तु !

सावित्री : मेरे सास ससुर के खोये साम्राज्य को लौटा दो

यम : तथास्तु !

सावित्री : मुझे सत्यवान के पुत्रों की माँ बनने का वरदान दें

यम : तथास्तु !

अब मुस्कुराने की बारी सावित्री की थी, बोली महाराज! आप विवस्वान सूर्य के पुत्र हैं, सब पर समान न्याय करने वाले हैं. आप तो सज्जन शिरोमणि हैं, आप कृपा के जलधर हैं, करुणा के सागर हैंऔर मैंने सुना है है कि संतों के साथ सात कदम भी चल दो तो मित्रता हो जाती है- सतां हि सप्तपदेशु मैत्री”. अतः आप मेरे परम मित्र भी हुए.. आप सन्त हैं, कृपालु हैं, न्यायी हैं, धर्मराज हैं इसलिए आप पर विश्वास करके आप से कुछ कहने का साहस करती हूँ कि अगर आप सत्यवान को जीवित नहीं करेंगे तो मैं उसके पुत्रों की माँ कैसे बनूँगीऔर यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े .

ये मेरे लिये मूल्यहीन है कि ऐसे कोई लोग थे या नहीं या ऐसी घटना घटी या नहीं. मेरे लिए ये मूल्यवान है कि कैसे सावित्री ने यम को बातों में उलझा कर सत्यवान के प्राण वापस बचा लिये. कैसे एक पत्नी अपने पति के लिए मृत्यु के देवता से लड़ पड़ी. कैसे एक महिला ने अल्पायु व्यक्ति को वर चुना और कैसे ये कहानियाँ हमें जीवन से, पर्यावरण से और जड़ों से जोड़ती है.

अपने जड़ों की ओर लौटें 🙏

एमजे

05 -06 - 2024 


बुधवार, 17 जुलाई 2024

जो जग में रहूँ तो ऐसे रहूँ....

 



पिछले दिनों सपरिवार कमल के खेतों की और जाना हुआ और खूबसूरत कमल के फूलों को देखते हुए ध्यान आया कि क्यों विभिन्न धार्मिक साहित्य में कमल के फूल का रूपक बार बार दिया जाता रहा है जैसे कमल चरण , कमल नयन , कमल के समान खिला हुआ मुख आदि.

कमल जिसका वैज्ञानिक नाम नेलुम्बो न्यूसीफेरा है. यह एक जलीय पौधा है जो हिंदू , बौद्ध , जैन और सिख धर्म जैसे धर्मों की कला में केंद्रीय भूमिका निभाता है और लगातार प्रतीकों के रूप में उद्धृत किया जाता रहा है.

भगवद्गीता में एक श्लोक आता है जिसका अर्थ है :

जो व्यक्ति बिना आसक्ति के अपने कर्तव्य का पालन करता है, परिणाम को परमेश्वर को समर्पित करता है, वह पाप कर्म से प्रभावित नहीं होता है, जैसे कमल पानी से अछूता रहता है।

कमल इस बात का प्रतीक है कि मानवता में दिव्य या अमर क्या है, और साथ ही यह पूर्णता का भी प्रतीक है. यह आंतरिक क्षमता की प्राप्ति का प्रतीक है तथा तांत्रिक तथा योगिक परंपराओं में भी सहस्रार के प्रतीक के रूप में पूजनीय है.

अंगुत्तर निकाय में, बुद्ध स्वयं की तुलना कमल के पुष्प से की है.

चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने कहा था कि मुझे कमल का बहुत पसंद है क्योंकि यह कीचड़ से उगने पर भी दाग ​​रहित होता है.जैन धर्म में भी तीर्थंकरों को कमल के सिंहासन पर बैठे या खड़े चित्रित किया गया है.

कमल के फूल पर तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है फ़िलहाल ईश्वर से इतनी ही प्रार्थना है कि जब तक जग में रहूँ तो ऐसे रहूँ ज्यूँ जल में कमल का फूल रहे..

एमजे
16-01-2024


Neru:



नेरु मलयालम भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब होता है “the truth” याने कि सच. एक कमाल की फ़िल्म है. जिसे देखने का आग्रह मुझसे एकाधिक बार किया जा चुका है. लेकिन आज सुबह अधिवक्ता अल्पजीत सिंह ने जब मुझे इसे देख डालने का आग्रह किया तो मुझसे रहा नहीं गया. अगर आप कोर्ट रूम ड्रामा देखना पसंद करते हैं तो ये फ़िल्म देखनी ही चाहिए.

एक अंधी लड़की का रेप हुआ है, रेपिस्ट शातिर है उसने पीछे कोई सबूत नहीं छोड़ा है.. ऐसे में मामले को साबित करना प्रॉसिक्यूशन के लिये असंभव दिखाई पड़ता है. लेकिन किस तरह से ऐसे मामले को साबित किया जाता है ये इस फ़िल्म का प्लॉट है.

केंद्रीय भूमिका में मोहनलाल हैं जो एक कमाल के अभिनेता हैं. उन्होंने वकील का किरदार निभाया है जो पीड़िता की ओर से न्यायालय में आते हैं.

क्योंकि फ़िल्म बलात्कार के एक मामले के इर्द गिर्द घूमती है, क़ानूनी दांव पेंच की बातें करती है, इसीलिए लॉ स्टूडेंट्स को इसे देखना ही चाहिए.

फ़िल्म देखते हुए एक ख़्याल ये भी आया कि जब तक किसी भी समाज में स्त्री को प्रेम नहीं किया जाता, उसे सम्मान नहीं दिया जाता, उसके प्रति संवेदनशील नहीं हुआ जाता, उसे भी एक मानव समझ कर अपनी बराबरी का नहीं माना जाता, बलात्कार जैसी घटनाएं होती रहेगी. यदि स्त्री को भोग की ही चीज है मान लिया जाए तो सहमती या असहमती फिर कहाँ मायने रखती है.

मेरे देखे ये एक मनोविकार से जन्म लेता है.. कई मनोवैज्ञानिक शोध इस विषय पर लगातार चल रहे हैं जिनका निष्कर्ष ये है कि बलात्कार जैसे अपराध को सख्त कानून से नहीं रोका जा सकता. काम का वेग इतना होता है कि जब यह उद्दाम वेग किसी के सिर पर चढ़ता है तो उस समय उसे कोई कानून नहीं दिखाई देता.

एक बार एक हाई कोर्ट जज साहब मुझे बता रहे थे कि जितना कानून सख्त होता जाता है उतना ही बीमारी और जटिल हो जाती है. उन्होंने मुझे बताया कि बलात्कार पर सख्त से सख्त कानून के आते-आते, बलात्कार के बाद स्त्रियों की हत्याएं अधिक होने लगीसबूत मिटाने के लिए हत्या तक कर दी जाती है.

मेरे देखे बलात्कार जैसे अपराधों से निपटने के लिए एक बेहद स्वस्थ समाज की जरूरत है, जहां स्त्री-पुरुष समान हो, उनका मिलना-जुलना सहज हो, सरल हो, उनके बीच रिश्ते बहुत ही पवित्रता के साथ बन सकते हों, सेक्स का दमन जरा भी न हो, इसे एक प्राकृतिक भेंट समझकर उसे स्वीकारा जाए, उसकी निंदा जरा भी न हो.

किसी तल पर जो आदिवासी हैं, जंगलों में रहते हैं, जो बेहद सहज, सरल व प्राकृतिक जीवन जीते हैं, वहां कभी बलात्कार जैसी घटनाएँ देखने में नहीं आती.. ये आधुनिक सभ्यता, शिक्षा व दमित समाज की देन है. आप क्या सोचते हैं ?

एमजे
28-01-2024

शुक्रवार, 12 जुलाई 2024

न्याय ?


कल जब इंटरव्यू के कुछ स्टूडेंट्स के साथ न्यायशब्द पर चर्चा चल रही थी तो ध्यान आया कि एलएलबी करने के दौरान जिस पहले अपराध को अपने प्रोफेसर से समझा था वो थी चोरी”.

 मुझे वो दिन आज तक याद है - आईपीसी की धारा 378 को उन्होंने एक समझाया और उदाहरण देते हुए कहा था कि मानलो तुम्हारी साइकिल कोई बिना तुम्हारी सहमति के बेईमानी से उठा कर ले जाए तो हम कहेंगे चोरी हुई. फिर उन्होंने ख़ुद ही पूछा बताओ चोरी के लिए क्या सज़ा होगी. मैंने खड़े होकर कहा सज़ा किसको ? बोले चोर को, देखो 379 में 3 साल की जेल हो सकती है मैंने 379 पढ़ा और लगभग चीखते हुए ही कहा और साइकिल का क्या होगा ? ये तो न्याय नहीं हुआ.. 379 में लिखा है चोरी करने वाले को 3 साल के लिए जेल में डाल दिया जायेगा और उससे जुर्माना भी वसूल किया जा सकेगा. लेकिन साइकिल का क्या ?? मुझे लगता है वहाँ लिखा होना चाहिए था कि चोरी गया सामान उसके मालिक को वापस दिलाया जायेगा या फिर चोर  को कहा जाएगा उसे वैसा ही सामान ख़रीद कर दे.

 मुझे आईपीसी में दिये गए दण्ड बिलकुल न्याय संगत नहीं लगे तबसे अब तक न्याय की सही परिभाषा तलाश कर रहा हूँ.. प्लेटो , सुकरात और अरस्तू अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में न्याय की बात करते हैं.

मैं न्याय को साध्य समझ रहा था लेकिन अक्षपाद गौतमन्याय को साधन बता रहे हैं. लिखते हैं नीयते विवक्षितार्थः अनेन इति न्याय:अर्थात् जिस साधन के द्वारा हम अपने विवक्षित तत्त्व के पास पहुँच जाते हैं (निर्णय के पास पहुँच जाते हैं या जिसे जानना चाह रहे हैं उस तक पहुँच जाते हैं) वही साधन न्याय है.

कुल मिलाकर मुझे लगता है न्याय की कोई भी सटीक व्याख्या मौजूद नहीं हैमैं खोज रहा हूँ आप भी ढूँढिये..

MJ
18-02-2024


ये सब तुम्हारा करम है आक़ा...

 



 

 

किताब को लिखा जाना और लिखने के बाद ठीक-ठीक प्रकाशित होना और उसके ऊपर प्रकाशन के 48 घंटों के भीतर अमेज़न रैंकिंग में नंबर 1 पर आ जाना और तीसरे दिन ही आउट ऑफ़ स्टॉक हो जाना ये सब दैवीय कृपा के बिना संभव नहीं.

 

देश भर के मीडिया हाउस ने किताब को लेकर उत्सुकता दिखाई है जो मन को प्रसन्नता देने वाला है.

 

मात्र छः माह पहले इस किताब को मूर्त रूप देने का विचार आया.. पब्लिशर से बात हुई उन्होंने उत्सुकता दिखाई और हम लग गये शामें ख़ाक करने में..

 

जब किताब छप कर आई तो विनीत भाई (पब्लिशर) का इरादा था कि इसकी लांचिंग नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में करेंगे और किताब का विमोचन सुप्रीम कोर्ट के किसी सिटिंग जज या कैबिनेट मिनिस्टर से करवाएँगे.. मेरे मन में इस बात को लेकर थोड़ा संकोच था कि सिटिंग जज या मिनिस्टर के होने के कारण किताब मीडिया रिपोर्टिंग का भाग बनेगी तो इसमें वो मज़ा आएगा नहीं, सोच ये थी कि किताब अपने कंटेंट के कारण चर्चा का विषय बने. वैसे भी मुझे नेता मंत्रियों के साथ फोटो खिंचवाने का बड़ा शौक़ नहीं लेकिन हाँ क़ानून का कोई विद्वान इसकी आलोचना या सराहना करे तो शिरोधार्य है.

 

बहरहाल तय ये हुआ कि मेरे स्टूडेंट्स के बीच ही इसका लॉंच हो और वो भी विधि के विद्वान भार्गव साब के हाथों से, फिर हम मीडिया को इसका प्रेस रिलीज़ भेज देंगे.

 

23 तारीख़ बुद्ध पूर्णिमा का दिन अनायास ही तय हो गया.. किताब मेरे प्यारे स्टूडेंट्स, समर्पित टीम और आदरणीय भार्गव साब की उपस्थिति में रिलीज़ की गई. मीडिया हाऊस को प्रेस रिलीज़ भेज दी गई.. और ये क्या! किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. लेकिन आप सभी को दुआओं से पहले ही दिन किताब अमेजन रैंकिंग में टॉप 5 पर ट्रेंड करने लगी और दूसरे दिन की समाप्ति तक नंबर एक पर.

 

"द प्रिंट" ने इस खबर को प्रमुखता से न्यूज़ में जगह दी और फिर बड़े न्यूज़ पोर्टल्स ने वहाँ से खबर उठा

ली. देखते ही देखते ये किताब लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई है.

 

बाबा फ़रीद में शब्दों में -

 

कोई सलीका है आरज़ू का,

न बन्दगी मेरी बन्दगी है

ये सब तुम्हारा करम है आक़ा

के बात अब तक बनी हुई है

 

एमजे

31.05.2024

 

 

 

किताब को लिखा जाना और लिखने के बाद ठीक-ठीक प्रकाशित होना और उसके ऊपर प्रकाशन के 48 घंटों के भीतर अमेज़न रैंकिंग में नंबर 1 पर आ जाना और तीसरे दिन ही आउट ऑफ़ स्टॉक हो जाना ये सब दैवीय कृपा के बिना संभव नहीं.

देश भर के मीडिया हाउस ने किताब को लेकर उत्सुकता दिखाई है जो मन को प्रसन्नता देने वाला है.

मात्र छः माह पहले इस किताब को मूर्त रूप देने का विचार आया.. पब्लिशर से बात हुई उन्होंने उत्सुकता दिखाई और हम लग गये शामें ख़ाक करने में..

जब किताब छप कर आई तो विनीत भाई (पब्लिशर) का इरादा था कि इसकी लांचिंग नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में करेंगे और किताब का विमोचन सुप्रीम कोर्ट के किसी सिटिंग जज या कैबिनेट मिनिस्टर से करवाएँगे.. मेरे मन में इस बात को लेकर थोड़ा संकोच था कि सिटिंग जज या मिनिस्टर के होने के कारण किताब मीडिया रिपोर्टिंग का भाग बनेगी तो इसमें वो मज़ा आएगा नहीं, सोच ये थी कि किताब अपने कंटेंट के कारण चर्चा का विषय बने. वैसे भी मुझे नेता मंत्रियों के साथ फोटो खिंचवाने का बड़ा शौक़ नहीं लेकिन हाँ क़ानून का कोई विद्वान इसकी आलोचना या सराहना करे तो शिरोधार्य है.

बहरहाल तय ये हुआ कि मेरे स्टूडेंट्स के बीच ही इसका लॉंच हो और वो भी विधि के विद्वान भार्गव साब के हाथों से, फिर हम मीडिया को इसका प्रेस रिलीज़ भेज देंगे.

23 तारीख़ बुद्ध पूर्णिमा का दिन अनायास ही तय हो गया.. किताब मेरे प्यारे स्टूडेंट्स, समर्पित टीम और आदरणीय भार्गव साब की उपस्थिति में रिलीज़ की गई. मीडिया हाऊस को प्रेस रिलीज़ भेज दी गई.. और ये क्या! किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. लेकिन आप सभी को दुआओं से पहले ही दिन किताब अमेजन रैंकिंग में टॉप 5 पर ट्रेंड करने लगी और दूसरे दिन की समाप्ति तक नंबर एक पर.

"द प्रिंट" ने इस खबर को प्रमुखता से न्यूज़ में जगह दी और फिर बड़े न्यूज़ पोर्टल्स ने वहाँ से खबर उठा ली. देखते ही देखते ये किताब लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई है.

बाबा फ़रीद में शब्दों में -

कोई सलीका है आरज़ू का, न बन्दगी मेरी बन्दगी है ये सब तुम्हारा करम है आक़ा के बात अब तक बनी हुई है

एमजे 31.05.2024


प्यारे स्टूडेंट्स

  





यूँ तो मुझे मेरा हर एक स्टूडेंट प्यारा है जिसका नाम याद रख सका हूँ वो भी और जिसका नाम ज़ेहन में नहीं है वो भी ॥ सैकड़ों कहानियाँ हैं स्टूडेंट्स से जुड़ी लेकिन आज इस एक स्टूडेंट की कहानी आप तक पहुँचाना चाहता हूँ ।।

पेशे से वो डॉक्टर है । बेहद गहरी बातें करता है।यहाँ नाम इसीलिए नहीं लिख रहा क्यूँकि कहता है अगर लोगों को पता चल गया कि मैं आपको जानता भी हूँ तो मुझे प्रिविलेज मिलने लगेगा और मैं ये नहीं चाहता।ऑफिस में मिलने आता है तो जूते बाहर उतारता है। बैठने को कहता हूँ तो कहता है बड़ी मुश्किल से आपके सामने खड़े होने का सामर्थ्य लेकर आया हूँ अब ना बैठाइये..खड़ा ही रहता है।

एक रोज़ मैंने उसे दो बजे मिलने का समय दियाऔर जो भी लोग आ रहे थे मैं सबसे मिल ही रहा था। बीच में लेक्चर्स भी थे तो शाम को 6:30 बजे फ्री हो पाया। घर जाने के लिए ऑफिस से निकाला तो देखा बाहर वो खड़ा था गाड़ी के पास। मैंने लगभग नाराज़ होते हुए कहा  दो बजे का टाईम दिया और और तुम अभी आ रहे हो, अब तो मेरे निकलने का समय हो गया….कल मिलते हैं।बड़े विनम्र भाव से उसने हाथ जोड़ते हुए कहा गुरु जी मैं तो ठीक दो बजे आ गया था बस आप व्यस्त थे तो आपको डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा।मैंने क्षमा माँगने के भाव से कहा मेरे भाई चार घंटे से ज़्यादा का समय ख़राब हो गया तुम्हारा, एक बार रिसेप्शन पर बोल देते कि सर ने मिलने बुलाया है……”  कहता है मैं तो आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ कि वेटिंग एरिया में बैठे- बैठे मेरी चार घंटे की पढ़ाई हो गई, मैं बुक्स लेकर आया था।

मैंने उसे स्नेह से गले लगा लिया और बोला चल गाड़ी में ही बैठ जा तुझे आगे ड्रॉप करता हूँ और थोड़ी देर बात भी हो जाएगी। मैंने सोचा कुछ विशेष बात करनी होगी या कोई समस्या लेकर आया होगा। गाड़ी ड्राइव करते हुए मैंने पूछा, “बताओ कैसे आना हुआ?”  कहता है, ”कोई विशेष प्रयोजन नहीं बस आपका आशीर्वाद लेने आया था।

फिर हमने थोड़ी इधर-उधर की बातें की…. एक ग़ज़ल उसने लिखी थी वो सुनाई और फिर मैंने पूछा बता तुझे कहाँ छोड़ दूँ?“ लगभग उसने नाराज़ होते हुए कहा, “जब छोड़ना ही है तो इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है कि कहाँ? आप तो कहीं भी छोड़ दो।कितनी गहरी बात ! तो ऐसे विद्वान स्टूडेंट्स हैं मेरे जिनसे सम्मान मिलता रहता है मुझे॥

कल गुरुपूर्णिमा के अवसर पर आप सभी मित्रों से विभिन्न माध्यमों से शुभकामना संदेश प्राप्त हुएशुक्रिया ॥ सुबह की शुरुआत भाई मयंक पटेल की हीरामणी से मुँह मीठा करके हुई और छत्तीसगढ़ से अंकिता की मम्मा ने नमकीन भेजा था मीठा और नमकीन दोनों एक साथ…. और इससे बढ़िया दिन की शुरुआत क्या ही हो सकती है ॥शाम एमपीपीएससी के स्टूडेंट्स के द्वारा सजाई गई थी, जहां हमने अपने कुछ विचार रखे और स्टूडेंट्स के विचारों से रूबरू हुए॥

दिन भर स्टूडेंट्स का आना जाना लगा रहा मंदाकिनी घर से खीर बना लाई, विशाखा ने पहली बार हॉस्टल में मेरे लिये कुछ पकाया , अनमोल गणपति ले आया तो अक्षत अपने हाथ की बनाई फूलों का गुलदस्ता लेकर आया, सुनीता गुलाब जामुन बना कर लाई, मोहित , पूजा, अक्षिता, निकिता, अश्विन, अफीफा, शिव, भूमिका, सोनाली, प्रतिभा, हिमांशी , रोहित , रवि , बलबीर , लव , राहुल राज , भागवत राणावत , राहुल , गोपाल, महावीर और बाक़ी सभी मित्र जिनकी, शुभकामनाएँ और गिफ्ट्स मुझ तक पहुँचे हैं उन सभी को अनेक धन्यवाद॥ आप सभी के स्वस्थ जीवन और उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ ॥

कईयों के साथ फोटो क्लिक नहीं हो पाये और कुछ के नाम मैं यहाँ मेंशन नहीं कर पाया आप सभी को आपके अथाह स्नेह के लिए जितना धन्यवाद दूँ कम है ॥

और हाँ, एक और बात…. गुरु होना तो बहुत बड़ी बात है, क्या पता मैं एक अच्छा शिक्षक भी बन पाया हूँ या नहीं। हाँ आप सबका मित्र होने में मुझे सुविधा है और और इसमें मैं सहज भी हूँ ॥

आपके इस मित्र की ओर से एक बार फिर गुरु पूर्णिमा की अनेक अनेक शुभकामनाएँ ॥ आपके गुरुजन की कृपा आप पर बनी रहे ॥

MJ
गुरु पूर्णिमा . २०२३