Diary Ke Panne

शुक्रवार, 12 जुलाई 2024

अमेज़न और मैं

 



1994 वह साल था जब अमेज़न अपने शुरुआती दौर में था ये वो समय  था जब हम स्कूल में पढ़ते थे. इंटरनेट क्या होता है हमें उसकी कोई भनक नहीं थी लेकिन ठीक इसी समय के आस पास मेरे दिमाग़ में भी ऐसा ही एक विचार कौंध रहा था. अपने मित्र संजय के साथ मिलकर हमने फ़्रेंड्स सर्विसनाम की एक संस्था बनाई. ये साल 1999 था. कुछ वर्षों की प्लानिंग और कुछ पैसे इकट्ठा कर लेने के बाद हमने ख़ुद से लोगो डिज़ाइन कर लिया था और साथ ही एक ब्रोशर डिज़ाइन करके उसके पाँच हज़ार प्रिंट भी ले लिए थेइस समय तक अमेज़न केवल किताबें ही बीच रहा था जबकि अमेज़न के काम से अनजान हम लोगों ने वो सभी सेवाएँ देने का विचार बना लिया था जो अमेज़न के द्वारा बहुत बाद में शुरू की गई.

छत्तीसगढ़ के सुदूर जगदलपुर शहर में और आसपास के कॉलोनीज़ में हमने ये ब्रोशर बाँटे. पता दिया था मेरे घर का और कांटैक्ट नंबर में था हमारे ही घर का लैंडलाइन नंबर. हम, हर तरह का सामान घर पहुँच सेवा के साथ ही (पे ऑन डिलीवरी मोड पर) उपलब्ध करवाने का प्लान बना चुके थे. दिन भर घर के फ़ोन की घंटी बजने लगी. ऑर्डर्स मिलने लगे. हम ही डिलीवरी करने वाले थे. हम ही ऑर्डर लेने वाले. हमारे पास निवेश करने के लिए कोई जमा पूँजी भी तो नहीं थी. कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर और गुरुद्वारे में तबला बजाते हुए जो थोड़े से पैसे जमा किए थे उससे ही ये काम शुरू किया था. मेरे पिता सरकारी कर्मचारी थे और संजय के भी, और हमारे आइडियाज़ को वो फ़िज़ूल ही समझते थे.

काम को शुरू हुए कोई तीन चार रोज़ हुए होंगे और पापा ने मुझे बुलाकर ज़ोरदार डाँट लगाईबोले पढ़ाई में ध्यान लगाओ ये सब फ़िज़ूल के काम यहाँ नहीं होंगे. एक महान विचार बीज रूप में ही मर गया कभी वृक्ष नहीं बन पाया.

मुझे इस बात का कोई गिला नहीं बस आज अनायास ही अमेज़न के इस चित्र पर नज़र पड़ी और ये आलेख लिखने का मन कर गया ताकि आप सब से कह सकूँ कि अपने बच्चों और स्वयं के आइडियास पर भरोसा कीजिए और कुछ नहीं तो उनके साथ खड़े रहिए. क्या पता अगला जेफ़ बेजोस आपके घर पर ही हो और आपको पता ही नहीं..

️MJ

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