अष्टमी के दिन श्रीकृष्ण प्रवास पर थे चहूँ ओर कृष्णजन्मोत्सव मनाया जा रहा था… उत्सव का माहौल था… लौटकर द्वारिका आये तो देखा वहाँ एक दीप भी नहीं जला था.. रुक्मणी ने आश्चर्य से पूछा - क्या यहाँ किसी की मृत्यु तो नहीं हो गई है नाथ! जिसका शोक मनाया जा रहा है…क्यूँकि मातम का सा माहौल था.
कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले प्रिये, इसे ही दिया तले अंधेरा कहते हैं… तुम्हें क्या लगता है जब हम त्रेता में अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने दिया जला कर हमारा स्वागत किया था?
अरे ! बिलकुल भी नहीं वो तो हनुमान हमसे पहले वायुमार्ग से अयोध्या पहुँच गये और नगरवासियों को कहा कि दिये जलाकर स्वागत करो…. नहीं तो शायद तब भी इसी तरह का मातम ही देखने को मिलता. हंसते हुए बोले तब तो हमने बड़ा भाई होना चुना था तो छोटे भाइयों ने भी अपना भ्रातृ धर्म निभाते हुए स्वागत सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी और इस बार तो हमने भाई भी छोटा होना ही चुना है.
सोचने वाली बात है कि जिस अयोध्या के नाम पर सत्तारूढ़ दल को पूरे देश भर में वोट मिले अयोध्या में ही उसे 4000 वोट का मिल पाना “दिये के तले ही अंधेरा होता है” इस कहावत को चरितार्थ कर रहा है.
और दिये तले हमेशा ही अंधेरा रहेगा इसका कुछ नहीं किया जा सकता !
एमजे
15-06-2024
जन्मदिन प्रवास से वापस लौटकर
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