किताब को लिखा जाना और लिखने के बाद
ठीक-ठीक प्रकाशित होना और उसके ऊपर प्रकाशन के 48
घंटों के भीतर अमेज़न रैंकिंग में नंबर 1 पर आ जाना और तीसरे
दिन ही आउट ऑफ़ स्टॉक हो जाना ये सब दैवीय कृपा के बिना संभव नहीं.
देश भर के मीडिया हाउस ने किताब को लेकर
उत्सुकता दिखाई है जो मन को प्रसन्नता देने वाला है.
मात्र छः माह पहले इस किताब को मूर्त रूप
देने का विचार आया.. पब्लिशर से बात हुई उन्होंने उत्सुकता दिखाई और हम लग गये
शामें ख़ाक करने में..
जब किताब छप कर आई तो विनीत भाई
(पब्लिशर) का इरादा था कि इसकी लांचिंग नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में करेंगे
और किताब का विमोचन सुप्रीम कोर्ट के किसी सिटिंग जज या कैबिनेट मिनिस्टर से
करवाएँगे.. मेरे मन में इस बात को लेकर थोड़ा संकोच था कि सिटिंग जज या मिनिस्टर
के होने के कारण किताब मीडिया रिपोर्टिंग का भाग बनेगी तो इसमें वो मज़ा आएगा नहीं, सोच ये थी कि किताब अपने कंटेंट के कारण चर्चा का विषय
बने. वैसे भी मुझे नेता मंत्रियों के साथ फोटो खिंचवाने का बड़ा शौक़ नहीं लेकिन
हाँ क़ानून का कोई विद्वान इसकी आलोचना या सराहना करे तो शिरोधार्य है.
बहरहाल तय ये हुआ कि मेरे स्टूडेंट्स के
बीच ही इसका लॉंच हो और वो भी विधि के विद्वान भार्गव साब के हाथों से, फिर हम मीडिया को इसका प्रेस रिलीज़ भेज देंगे.
23 तारीख़ बुद्ध पूर्णिमा का दिन
अनायास ही तय हो गया.. किताब मेरे प्यारे स्टूडेंट्स, समर्पित
टीम और आदरणीय भार्गव साब की उपस्थिति में रिलीज़ की गई. मीडिया हाऊस को प्रेस
रिलीज़ भेज दी गई.. और ये क्या! किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. लेकिन आप सभी को
दुआओं से पहले ही दिन किताब अमेजन रैंकिंग में टॉप 5 पर
ट्रेंड करने लगी और दूसरे दिन की समाप्ति तक नंबर एक पर.
"द प्रिंट" ने इस खबर को
प्रमुखता से न्यूज़ में जगह दी और फिर बड़े न्यूज़ पोर्टल्स ने वहाँ से खबर उठा
ली. देखते ही देखते ये किताब लोगों के
बीच चर्चा का विषय बन गई है.
बाबा फ़रीद में शब्दों में -
“कोई सलीका है आरज़ू का,
न बन्दगी मेरी बन्दगी है
ये सब तुम्हारा करम है आक़ा
के बात अब तक बनी हुई है”
✍️एमजे
31.05.2024
किताब को लिखा जाना और लिखने के बाद ठीक-ठीक प्रकाशित होना और उसके ऊपर प्रकाशन के 48 घंटों के भीतर अमेज़न रैंकिंग में नंबर 1 पर आ जाना और तीसरे दिन ही आउट ऑफ़ स्टॉक हो जाना ये सब दैवीय कृपा के बिना संभव नहीं.
देश भर के मीडिया हाउस ने किताब को लेकर उत्सुकता दिखाई है जो मन को प्रसन्नता देने वाला है.
मात्र छः माह पहले इस किताब को मूर्त रूप देने का विचार आया.. पब्लिशर से बात हुई उन्होंने उत्सुकता दिखाई और हम लग गये शामें ख़ाक करने में..
जब किताब छप कर आई तो विनीत भाई (पब्लिशर) का इरादा था कि इसकी लांचिंग नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में करेंगे और किताब का विमोचन सुप्रीम कोर्ट के किसी सिटिंग जज या कैबिनेट मिनिस्टर से करवाएँगे.. मेरे मन में इस बात को लेकर थोड़ा संकोच था कि सिटिंग जज या मिनिस्टर के होने के कारण किताब मीडिया रिपोर्टिंग का भाग बनेगी तो इसमें वो मज़ा आएगा नहीं, सोच ये थी कि किताब अपने कंटेंट के कारण चर्चा का विषय बने. वैसे भी मुझे नेता मंत्रियों के साथ फोटो खिंचवाने का बड़ा शौक़ नहीं लेकिन हाँ क़ानून का कोई विद्वान इसकी आलोचना या सराहना करे तो शिरोधार्य है.
बहरहाल तय ये हुआ कि मेरे स्टूडेंट्स के बीच ही इसका लॉंच हो और वो भी विधि के विद्वान भार्गव साब के हाथों से, फिर हम मीडिया को इसका प्रेस रिलीज़ भेज देंगे.
23 तारीख़ बुद्ध पूर्णिमा का दिन अनायास ही तय हो गया.. किताब मेरे प्यारे स्टूडेंट्स, समर्पित टीम और आदरणीय भार्गव साब की उपस्थिति में रिलीज़ की गई. मीडिया हाऊस को प्रेस रिलीज़ भेज दी गई.. और ये क्या! किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. लेकिन आप सभी को दुआओं से पहले ही दिन किताब अमेजन रैंकिंग में टॉप 5 पर ट्रेंड करने लगी और दूसरे दिन की समाप्ति तक नंबर एक पर.
"द प्रिंट" ने इस खबर को प्रमुखता से न्यूज़ में जगह दी और फिर बड़े न्यूज़ पोर्टल्स ने वहाँ से खबर उठा
ली. देखते ही देखते ये किताब लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई है.
बाबा फ़रीद में शब्दों में -
“कोई सलीका है आरज़ू का, न बन्दगी मेरी बन्दगी है ये सब तुम्हारा करम है आक़ा के बात अब तक बनी हुई है”
✍️एमजे 31.05.2024
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें