आज गुरु पूर्णिमा है ,भारतीय संस्कृति और
दर्शन की परम्परा से गृहीत भारतीय वाङ्मय में गुरु को ब्रह्म से भी अधिक महत्व
प्रदान किया गया है. गुरु को प्रेरक, प्रथम आभास देने वाला, सच्ची लौ जगाने वाला और कुशल
आखेटक कहा गया है, जो अपने शिष्य को उपदेश की वाणों से बिंध
कर उसमें प्रेम की पीर संचरित करता है. कबीर
ने कहा है-
“गुरु गोविन्द तो एक हैं दूजा याहू आकार,
आप मेटि जीवित मरै तो पावै करतारII”
अद्वयतारकोपनिषद में अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर करके ज्ञान प्रदान करने वाले को गुरु कहा गया है - “गुशब्दस्त्वन्धकारः स्यादुशब्दस्तन्निरोधकःII” इस प्रकार अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर करके ज्ञान प्रदान करने वाला गुरु कहाता है. कहा गया है- गारयति ज्ञानम् इति गुरुः..... अर्थात गुरु उसे कहते है जो ज्ञान का घूंट पिलाये.
सूर के विषय में तो एक कहावत ही प्रचलित
है की उनके गुरु बल्लभाचार्य ने उनके कर्तृत्व को ही उलट दिया था.. सूरदास के
दैन्य एवं आत्मग्लानि के पदों को सुनकर बल्लभाचार्य ने कहा था की क्या घिघियाते ही
रहोगे, कुछ कृष्ण की लीला गाओ ? और फिर
वात्सल्य और श्रृंगार का सूरसागर उताल तरंगें भरने लगा था, जो
आज भी हिन्दी साहित्य के लिए गौरव की वस्तु मानी जाती है..
जायसी के पद्मावत में सुआ गुरु का काम
करता है... “गुरु सुआ होई पंथ देखावा” मेरे देखे प्रेम मार्ग में भी गुरु का महत्व
है.... वही प्रेमी को प्रिय की ओर सर्वप्रथम उन्मुख करता है
कबीर अपने गुरु की प्रशंसा करते हुए नहीं
अघाते... उन्होंने तो गुरु दिखाई बाट कहकर साधना में सिद्धि का सारा श्रेय अपने
गुरु को दिया है.... काशी में हम प्रकट भये हैं रामानन्द चेताये जैसी उक्ति भी कबीर
के गुरु प्रशंसा का प्रमाण है.
मेरे जीवन में कई लोगों कि छाप है जिन्हें
मैं गुरु के रूप में देखता हूँ और जिनेहं वन्दनीय समझता हूँ... जैसे जिनकी बात आज
मैं करना चाह रहा हूँ “डॉ मुकेश कटारे”..... हम बच्चों के बीच कटारे सर के नाम से प्रसिद्द
डॉ कटारे बस्तर हाई स्कूल में में साईंस पढ़ाते थे.... लंबा कद, छरहरे, सौम्य और गंभीर कटारे सर से
परिचय तब से था जब मैं कक्षा आठ में पढता था. विषय पर गहरी पकड़ और बच्चों से
मित्रवत व्यवहार सर को अलग ही व्यक्ति बनाते थे. वे आकाशवाणी के कार्यक्रमों में
लगातार जाते रहते थे और जब कभी कोई छात्रों से सम्बंधित कार्यक्रम होता तो मुझे भी
साथ ले जाते.. परिचर्चा और सामान्य ज्ञान के कई कार्यक्रमों में उनके साथ आकाशवाणी
जाने का लगातार अवसर मुझे मिलता था.
स्कूल के लंच टाईम में सर के साथ कई बार
भोजन करने का अवसर मिला और विज्ञान कि तो कितनी ही गूढ़ बातें उनसे समझीं और सीखीं
जो आज तक वैसी ही याद हैं जैसी उन्होंने बताई थी.
कक्षा 10 में वो हमारे क्लास टीचर
बने.... मैं क्लास का मॉनिटर था. अटेंडेंस से लेकर कॉपी चेक करने की ज़िम्मेदारी
वो मुझे देते थे और मैं अपने आप पर गर्व करता था.. “बना है शाह का मुसाहिब तो फिर
है इतराता....” ख़ुद को काबिल समझता था.
स्टाफ रूम में जहां सारे टीचर्स बैठते थे उनके कारण मुझे भी बैठने का अवसर मिलता
था.
मैं अगर क्लास रूम में नहीं हूँ तो या तो
प्लेग्राउंड में होऊंगा और अगर वहां भी
नहीं हूँ इसका मतलब है कि स्टाफ रूम में टीचर्स के साथ बैठा मिलूँगा.
मेरे मन में सभी शिक्षकों के लिए गहन आदर
भाव था लेकिन सर के लिए मेरे मन में अलग ही किस्म का आदर और सम्मान था बाकी सब
मेरे शिक्षक थे तो कटारे सर मेरे गुरु थे. उन्हें भी मुझसे बड़ा लगाव था ऐसा मुझे
लगता है और साथ ही उनको यह विश्वास भी था कि मैं स्कूल टॉप करूँगा.
एग्जाम हुए और फाईनल रीज़ल्ट का दिन भी आ गया....ये क्या स्कूल
तो दूर की बात मैं क्लास भी टॉप नहीं कर पाया. इस बात से मुझे इतनी हताशा हुई कि
मैं रिजल्ट के बाद उनसे मिलने भी नहीं गया. सोचता था किस मुँह से उनसे मिलूँगा फिर
स्कूल खुलने के बाद पता चला कि उनका ट्रांसफ़र ग्वालियर हो गया है.
फिर कभी उनसे मिलना नहीं हुआ.. लेकिन
उनकी बातें हमेशा ज़ेहन में ताज़ा रहीं.. मुझे नहीं पता कि क्या उन्होंने भी मुझे
कभी याद किया होगा? लेकिन जब भी मैं साइंस कि दुनियां में झांकता हूँ तो उनकी आवाज़ और झलक हमेशा मेरे ज़ेहन में ताज़ा हो जाती है ... उनके व्यक्तित्व की छाप
हमेशा मुझ पर हमेशा रहेगी...
सभी गुरुजनों को गुरु पूर्णिमा कि
शुभकामनाएँ...
✍️एमजे21-07-2024
1 टिप्पणी:
Bahut khub sir wo jarur aapko yaad karten honge...🙏 Or mai dhany hun jo mujhe aap jese Guru mile🙏🙏😊
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