Diary Ke Panne

बुधवार, 17 जुलाई 2024

जो जग में रहूँ तो ऐसे रहूँ....

 



पिछले दिनों सपरिवार कमल के खेतों की और जाना हुआ और खूबसूरत कमल के फूलों को देखते हुए ध्यान आया कि क्यों विभिन्न धार्मिक साहित्य में कमल के फूल का रूपक बार बार दिया जाता रहा है जैसे कमल चरण , कमल नयन , कमल के समान खिला हुआ मुख आदि.

कमल जिसका वैज्ञानिक नाम नेलुम्बो न्यूसीफेरा है. यह एक जलीय पौधा है जो हिंदू , बौद्ध , जैन और सिख धर्म जैसे धर्मों की कला में केंद्रीय भूमिका निभाता है और लगातार प्रतीकों के रूप में उद्धृत किया जाता रहा है.

भगवद्गीता में एक श्लोक आता है जिसका अर्थ है :

जो व्यक्ति बिना आसक्ति के अपने कर्तव्य का पालन करता है, परिणाम को परमेश्वर को समर्पित करता है, वह पाप कर्म से प्रभावित नहीं होता है, जैसे कमल पानी से अछूता रहता है।

कमल इस बात का प्रतीक है कि मानवता में दिव्य या अमर क्या है, और साथ ही यह पूर्णता का भी प्रतीक है. यह आंतरिक क्षमता की प्राप्ति का प्रतीक है तथा तांत्रिक तथा योगिक परंपराओं में भी सहस्रार के प्रतीक के रूप में पूजनीय है.

अंगुत्तर निकाय में, बुद्ध स्वयं की तुलना कमल के पुष्प से की है.

चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने कहा था कि मुझे कमल का बहुत पसंद है क्योंकि यह कीचड़ से उगने पर भी दाग ​​रहित होता है.जैन धर्म में भी तीर्थंकरों को कमल के सिंहासन पर बैठे या खड़े चित्रित किया गया है.

कमल के फूल पर तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है फ़िलहाल ईश्वर से इतनी ही प्रार्थना है कि जब तक जग में रहूँ तो ऐसे रहूँ ज्यूँ जल में कमल का फूल रहे..

एमजे
16-01-2024


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